Thursday, November 24, 2011

 इस बार एक लघुकथा के बहाने : 
                             डर
      पैसेंजर गाड़ी का भरा हुआ डब्बा | खिड़की के एक तरफ बैठी नौजवान लड़की ,ब्याहने से भी कम उम्र की लगती, पर गोदी में बच्ची बैठी है | सामने वाली खिड़की - सीट पर उस का पति बैठा है | वह दोनों बच्ची में मस्त हैं | बच्ची कोई छह=सात महीने की है |
   उस बच्चे वाली  औरत के  साथ एक काली- कलूटी बूढी औरत बैठी है | उसकी  उम्र के बारे में बस अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है | अगर उस  से पूछोगे तो कहेगी -पता नहीं ! वैसे भी हालत से तो लगता  है उम्र को याद कर के लेना भी क्या है ! चेहरे पर चर्बी के नाम की कोई चीज नहीं है | दांत न होनें    के कारण , वह और भी पिचका हुआ लगता है |
       मैं  उस काली बूढी औरत के सामने बैठा हूँ | उस बच्ची के  पिता के साथ | मरे पास एक पढ़ी-लिखी लगती औरत आ कर बैठ  गयी है | तीन=तीन सीटों वाली जगह पर छह =छह  लोग बैठे हैं , जो खड़े हैं वो अलग |
       माँ-बच्चा हँस खेल रहे हैं | उस ने बच्चे की बाहें पकड़ कर उसे खड़ा किया हुआ है | मेरे साथ बैठी औरत भी उस में दिलचस्पी दिखा रही है |
      एकदम बच्ची रोने लगती  है | उस की माँ बोलती है ,' डर गयी है |' उसका भाव स्पष्ट है कि बच्ची साथ बैठी औरत को देख कर डरी है | वह  औरत जो एक गठड़ी सी बनी बैठी है | वह कुछ चबा रही है | उस ने अपने एक हाथ की मुट्ठी में कस कर रोटी  पकड़ी हुई है | रोटी वैसे नज़र नहीं आ  रही है | वह एक छोटी सी बुरकी तोडती है और धीरे से मुंह में  रख लेती है |  
       बच्ची एक बार चुप कर चुकी है | माँ  उस का ध्यान , इधर-उधर लगाती है | पर वह फिर रोने लगती है | मेरे साथ बैठी औरत का ध्यान बच्ची में  है |माँ एक बार फिर कहती ही ,' देखती भी है और डर के रोती भी है |' और उस का चेहरा बाहर खिड़की की तरफ  करती है या अपने  पति की ओर |
       मैं सोचता हूँ कि क्या बच्ची सचमुच उस बूढी औरत से डर रही है ? क्या उस का चेहरा डरावना है ? बच्ची तो इस का जवाब नहीं दे सकती , पर सच मानिये , ऐसे चेहरे देख कर डर लगना ही चाहिए | ना मालूम हमारे देश के कर्णधारों को ऐसे चेहरे दिखते नहीं या वे इस तरह की डर की भावना से ऊपर उठ चुके हैं |
     बच्ची के फिर रोने पर  मेरे साथ बैठी औरत, उस की तरफ एक बिस्कुट बढाती है | उस की माँ कहती है,'अभी खाती नहीं , अभी सिर्फ दूध पीती  है |'
       औरत अब बिस्कुट के बढाये हाथ के साथ यह भी जोडती है ,'क्यों नहीं खाती ,खिलाएगी तो खाएगी | अब इस का तेरे दूध से क्या बनता  होगा ? ' उस की आवाज़ में एक अधिकार है  |
       इतना सुन कर वह बिस्कुट पकड़ लेती है | 
         ' जरा सा तोड़ कर इस के मुंह  को लगा , यह इस को चूसेगी तो खाया जायेगा |' वह खाने का ढंग भी    सिखा रही है |
        बच्ची बिस्कुट को होंठों में ले कर चूसने लगती है | उसने  बिस्कुत हांथों में पकड़ लिया है | बच्ची के हाथ मुंह खराब कर लिए हैं | माँ-बाप बच्ची के हाथ धोते हैं ओर मुंह साफ करते हैं |
        साथ बैठी बूढी औरत ने रोटी  खत्म कर ली है |
        बच्ची अब फिर उस की तरफ देख रही है | 
         बूढी बच्ची को अपने पिचके मुंह से हँसाने का प्रयास करती हुई बोलती  है ,' इस भैनजी की बात ठीक है , रोटी  खिलाया कर इसे ,रोटी ना मिले तो भी बच्चे ...... रोते हैं | '
         मुझे लगा जैसे उस ने पहले रोने की जगह डर बोलना चाहा है |

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