Sunday, October 30, 2011

swaal hi swaal

    सवाल - क्या  जरूरी हैं जिंदगी में ?
    सवालों से घिरा वातावरण क्या परेशान नहीं करता ? आप सुबह सवेरे चाय का कप ले कर बेठे हैं और आप के हाथों में पकड़ा अख़बार इतने सवाल खड़े करता है कि आप अपना सर पकड़ लेते हैं
अब आप दूसरे दृष्टिकोण से सोचिये कि मानव ने आज तक जितना भी विकास किया है, वह उसकी प्रश्न उठाने की प्रवृति के कारण ही संभव हुआ है .
   खेती -बाड़ी से ले कर दवाएओं के अविष्कार तक , अगर हमने किसी को श्रेय देना हो तो वह होगी मानव की जिज्ञासा वाली प्रवृति . उसका क्यों व् कैसे से जुड़ा स्वभाव . कोई व्यक्ति बीमार हुआ तो पहला सवाल उठा कि ऐसा क्यों ? और फिर मानव उस का    हल ढूंढने में जुट गया . 
इस दृष्टि से सवालों के संकल्प को लेंगे तो    निश्चित ही हम न तो सवालों को    झेलने से घबराएंगे और न ही सवाल उठाने में हिचकिचाहट महसूस करेंगे. किसी भी समस्या का हल ढूंढने के लिए पहला अनिवार्य कदम सवाल उठाना ही है . समस्या को समझने , उस कि जड़ को खोजने के लिए पूछताछ का महत्व है. इस से हमारी विश्लेषण करने की क्षमता  बढती  है . इस लिए सवालों से विचलित नहीं होना है . बल्कि सवालों के बल पर भविष्य को ओर अधिक उज्वल बनाना है.
   पर आज के परिवेश में मुश्किल यह है कि हर तरफ सवाल ही सवाल हैं और जवाब कहीं नज़र नहीं आता है . या तो जवाब देने वाले ही नहीं है या फिर जवाब ऐसा मिलता है कि बौखलाहट होती है .यह स्थिति फिर कुंठा का कारण बनती है और मानसिक रोगों कि बुनियाद का काम करती है. इसी लिए शायद इस इकीवीं सदी को मानसिक रोगों की सदी कहा जा रहा है .
   इस लिए जरूरी है कि अपने आप को सिर्फ सवाल उभरने व उनका हल तलाशने तक ही महदूद न किया जाये बल्कि एक सरगरम भागीदारी के लिए आगे बढ़ कर क्रियाशील  हुआ जाये .

Wednesday, October 26, 2011

ਸਰੋਕਾਰSAROKAR: haiku-aaj diwali par

ਸਰੋਕਾਰSAROKAR: haiku-aaj diwali par

haiku-aaj diwali par

    
   हाइकु के बहाने  
      
     
       दीप जलाएं 
      
      पर देखें जरुर 

       मिटे अँधेरा   

Sunday, October 23, 2011

diwali is baar yoon manayen

    दिवाली है - अँधेरे के विरुद्ध जहाद का उत्सव . मानव के विकास का सम्पूर्ण सफ़र अँधेरे के विरुद्ध संघर्ष का है . पर यह अँधेरा सिर्फ रात के अँधेरे तक सीमित नहीं है . रात का अँधेरा तो सुबह सूरज के आने से मिट जाता है , परन्तु मानव  के आस - पास फैले अनेकों अँधेरे हैं , जैसे सामाजिक असमानता , अनपढ़ता , अन्धविश्वास का अँधेरा व् आज के समय में भ्रेष्टाचार .
    क्या यह अँधेरे मनुष्य की समझ और बुद्धि के सामने बहुत बड़े हैं ? इस प्रश्न का उत्तर ढूँढना है .
   हमें सीख दाने वाली सबसे अहम् धारा है -  इतिहास . परन्तु जरुरत है कि इतिहास को सही दृष्टिकोण से देखें .
     समय एक वृत्त कि तरह होता है , जैसे कि यह हर वर्ष दोहराया जाता है . इतिहास कि चाल  सीधी होती है , क्योंकि मानव  इस में विकास करता हुआ स्पष्ट दिखाई देता है .हम अक्सर दोनों को मिला लेते हैं .
    हमें इतिहास से सीख कर ,अपनी घटनाओं को इस तरह निर्मित करना चाहिए कि वह समय में एक मील पत्थर कि तरह जुड़ जाएँ . 

     इस वर्ष दिवाली  को इसी संदर्भ में लें

और मानव जीवन के इतिहास में रोशन पल

कि तरह याद किये जाएँ .
      बहुत बहुत शुभ कामनाओं के साथ -----समाज सरोकार परिवार .




Thursday, October 20, 2011

haiku

बेल लिपटी 
छूने चली आकाश 
ये है  विश्वाश 
    ०
अच्छी है यह 
भूलने  की आदत 
दर्द से कह
    ०
याद रखना 
मुश्किल हुआ जब   
बहुत रोया


हाइकु: यह जापानी भाषा की कविता शैली है |