ये देश किसका है ?
जिस सवाल को ले कर यहाँ बात शुरू की गयी है , अगर उस पर बात बढ़ाएं तो क्या यह बहुत मुश्किल प्रश्न है ? क्या इस का जवाब सहज नहीं हो सकता कि यह देश मेरा है या हमारा है| यह प्रश्न उठता ही क्यों है या उठे ही क्यों |
सात दशकों की आज़ादी के बाद अगर देश अपना=अपना सा न लगे तो आप इसे क्या कहेंगे?
आप सोचते होंगे कि यह सब मैं किस आधार पर कह रहा हूँ | हर रोज भारत माता की जय बोली जाती है, हर स्कूल में बच्चे राष्ट्र गीत गा कर दिन का आरम्भ करते हैं | चलो आप की बात मान लेते है और यह भी सच है कि आप आज़ाद भारत की पैदायश हो ओर आप ने भी इसी तरह देश का गुणगान किया है \ क्या आप ने स्वयं छाती चौड़ी कर के गर्व से कहा है ? आखिर कौन रोकता है आप को ?
हर रोज सुबह जब आप समाचार -पत्र खोलते हो और मुख्य पृष्ठ ही आप के दिन की शुरुआत उदासी व निराशा से करे तो कैसा लगता है ? अगर हर रोज दस समाचारों में लगभग नौ आप को अँधेरे की खाई में ले जाने वाले हों तो ?
इस तरह के हालातों का देश अपना नहीं हो सकता ना ?

बात है देश को अपना समझने की कि कोई ऐसा महसूस तो करे कि यहाँ सुख-चैन से जी रहा है | जबकि हालत ऐसी है कि व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह चैन से मर भी नहीं सकता |
वास्तव में यह हालत तभी पैदा हुई है कि आप देश को अपना नहीं समझते | इसीलिए कुछ लोग अधिकार से इसे बीच रहे हैं | इसे यूं मत लें कि कुछ लोग देश को बीच-खा रहे हैं , इसलिए यह मेरा नहीं है | कोई एक अकेला या कुछ लोग इस देश के मालिक नहीं हैं |
देखिये ! एक बार इसे अपना कहना सीखिए , इसे अपनी आदत बनाइये ,फिर यह आप को अपना-अपना भी लगेगा और देश बेचने वाले के प्रति रोष भी होगा | शुरू तो करिए |
इस सप्ताह का विचार :
दिया जलाना
जब भूल गया तूं |
तो रात बोली -
सूरज का इंतजार
अब ना करना तूं |